मैं 13 साल की थी तो मेरी माँ लंदन गयी थीं. मेरे मामा जी उस समय वहाँ ई एन टी स्पेशलिस्ट के तौर पर प्रैक्टिस करते थे. माँ को अचानक ही कान में कुछ तकलीफ़ शुरू हुई, मामा ने कहा कि यहाँ आ जाइए मैं ही इलाज कर दूँ. बस ऐसे ही उनका प्रोग्राम बन गया.
हम भाई-बहन अपनी-अपनी पढ़ाई के बीच में थे और वैसे भी इतने सारे लोगों के जाने का कोई मतलब भी नहीं था, तो हम लोग पापा के साथ यहीं अपने घर पर रहे. माँ अकेले ही गयी थीं. परिस्थितियाँ कुछ ऐसी होती गयीं कि माँ को वापस आने में छः महीने लग गए. शुरू में तो हम लोग जैसे तैसे माँ के बिना रह गए.
जब माँ की बहुत याद आती थी तब पापा समझाते थे कि थोड़े दिनों की ही तो बात है. फिर तो वो आ ही जाएँगी. उन दिनों टेलीफ़ोन पर बात करना भी इतना आसान न था. अपने देश में ही किसी दूसरे शहर बात करनी हो तो ट्रंक कॉल बुक करके घंटों इंतज़ार करना पड़ता था, फिर विदेश की कॉल लगाना तो एक तरह से असम्भव ही रहा होगा क्योंकि मुझे याद नहीं आता कि माँ के विदेश प्रवास के दौरान हमारी कभी उनसे फ़ोन पर बात हुई हो.
कभी कभी हम बच्चे बहुत उदास हो जाते थे तो पापा भी हम लोगों के साथ बैठ कर माँ को याद करते और हमारा ध्यान भटकाने के लिए तरह तरह की बातें बताया करते थे. ऐसे ही एक दिन हम लोग बैठे बातें कर रहे थे. मैं ने कहा- “पापा, क्या माँ भी हमें याद करके ऐसे ही दुःखी हो रही होंगी?” पापा ने कहा- “तुम्हारी माँ तो इस समय चैन से सो रही होंगी, क्योंकि अभी वहाँ पर रात होगी.” मेरे लिए तो यह बिल्कुल अनोखी बात थी. हम सभी उत्सुक होकर पापा से पूछने लगे कि अभी वहाँ पर क्या समय हो रहा होगा? तब पापा ने हमें भारतीय समय के विपरीत इंगलैंड का टाइम पता करने के लिए एक अनोखी ट्रिक बतायी.
पापा ने एक रिस्ट वॉच ली और कहा कि देखो, अभी अगर भारत में घड़ी में 9 बज रहे हैं (इस तरह 👇🏻),
तो इंगलैंड का समय देखने के लिए घड़ी को उल्टा कर दो. उनका समय हमसे साढ़े पाँच घंटे पीछे है इसलिए अभी वहाँ रात का वो समय होगा जो घड़ी को उल्टा करने पर दिख रहा है यानि कि साढ़े तीन (इस तरह👇🏻).
फिर तो हम बच्चों को एक खेल मिल गया. हम जब भी माँ को याद करते तो घड़ी देख कर टाइम का अन्दाज़ लगाते कि माँ अभी वहाँ पर क्या कर रही होंगी. बड़ा मज़ा आता था. सिर्फ़ इंगलैंड का टाइम भर देख लेने से ही ऐसा लगता था कि हम वहीं पर पहुँच गए हैं और माँ के पास बैठे हैं.
अब तो खैर, माँ और पापा ऐसी जगह चले गए हैं जहाँ क्या समय होगा, वो कैसे होंगे, हमें याद करते होंगे, यह हम किसी भी तरह पता नहीं लगा सकते. अब तो कभी उनकी याद आए तो खुद से ही खुद का ध्यान भटकाना पड़ता है…
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