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ज़िन्दगी-ज़िन्दगी – फलसफां जिंदगी का

  ज़िन्दगी एक मौसम की तरह है. कभी धूप, कभी छाँव, कहीं बारिश की झड़ी तो कभी सूखे पतझर का आलम. मुझे जिंदगी को हमेशा पॉजिटिव नज़रिए से देखना पसंद है. हाँ होता है, कभी कभी ऐसी घनी बदली छाती है कि लगता है अब कभी उजाला होगा ही नहीं. लेकिन कुदरत का नियम है, एक के बाद दूसरा...

हम तो बादल हैं बरसते हैं चले जाते हैं …

रात बारिश हुई, खुनकी हवा में बाक़ी है, कौन आया था जो ख़ुशबू की तरह बाक़ी है… जिसके कांधों पे कोई पंख नहीं, पाँव नहीं, ठाँव नहीं फ़िर भी उड़ता है दीवाना सा बेवजह, बेजगह … कहाँ ढूँढोगे हमें दूर उफ़क तक जाकर, हम तो बादल हैं बरसते हैं चले जाते...