कोफ़्ते की कोफ़्त – शायद ही ऐसा आपने पहले कभी सुना हो। क्या है कोफ़्ते की कोफ़्त आइये जान लीजिए आप भी।
रसोई का काम मज़ाक़ नहीं होता है. जी जान लगा दीजिए तब कहीं जाकर कुछ परोसने लायक़ तैयार होता है. इसके बाद भी जान अटकी रहती है कि जो बना वह खाने वालों को कैसा लगेगा. कुछ पारम्परिक बना रहे हों तो इस तरह के ख़तरे कम ही होते हैं लेकिन अगर कुछ नया ट्राई कर रहे हों तो मैं तो पहले ख़ुद को इस बात के लिए तैयार कर लेती हूँ कि यह जो बन रहा है, अगर नकार दिया गया तो इसे मैं कितने दिन में खा कर ख़त्म कर पाऊँगी. ख़ास तौर पर तब, जब आपको कुछ ग़ैर- पारम्परिक और बिना अनुपात की चीज़ों को एडजेस्ट करना हो. हमारी तरफ़ इस काम को ‘सधाना’ कहते हैं.
हाँ तो मैं ने भी ‘सधाने’ के लिए अक्सर बहुत सी चीज़ें इस तरह बनायी हैं जो ऐसी बन गयीं कि लोग तारीफ़ कर कर के खाते गए और कम भी पड़ गया. ऐसी ही एक डिश है बचे हुए सलाद के कोफ़्ते.
हमारे यहाँ एक बार किसी फ़ंक्शन में काफ़ी सारा सलाद बच गया था जिसमें गाजर, मूली, खीरा, चुकंदर, सलाद के पत्ते, प्याज़, निम्बू, हरी मिर्च और अंकुरित अनाज भी थे. इतनी सारी पौष्टिक चीज़ें फेंकने का मन भी नहीं हो रहा था और बासी सलाद किसी को खिला भी नहीं सकती थी. फिर मैं ने सोचा क्यों न इनके कोफ़्ते बना डालूँ.
बचे हुए सारे सलाद को पहले मैं ने साफ़ पानी से धोया और फिर फ़ूड प्रॉसेसर में डाल कर महीन कतर डाला. एक बार सोचा कि निम्बू के टुकड़े हटा दूँ फिर लगा कि निम्बू के छिलकों में डीटॉक्सिफ़िकेशन का अद्भुत गुण होता है, साथ ही यह कैन्सर रोधी भी होता है इसलिए सब एक साथ मिला कर कतर दिया. चने और मूँग थे ही, इसलिए बाइंडिंग के लिए भी कुछ नहीं डालना पड़ा सिर्फ़ नमक मिलाया और कोफ़्ते बना कर तल कर एकदम सिम्पल वाली ग्रेवी में डाल दिए. ताज़ी हरी धनिया तो ख़ैर, किसी भी डिश में डाल दीजिए तो ऐसे भी समाँ बँध जाता है.
कहना न होगा कि सलाद के कोफ़्ते बहुत ही लाजवाब बने थे. फ़ोटो नहीं ले पायी बस यही अफ़सोस है.